Sunday 6 May 2012

दुनिया वालों मत समझो कंगाल


कितनों को चाहा मैने अपनी दुनिया में
लेकिन वे जाने अनजाने छूट गये
जितनों को थाहा जाकर उनकी दुनिया में
छिछले थे इसलिये व्यर्थ में रूठ गये
बस इसी लिये पैगाम कबीरी लाया हूँ।
दुनिया वालों, मत समझो कंगाल
असल सरमाया हूँ...................।।१।।


दुनिया नयी निराली सबकी प्यारी है
जंगल झाडी बगिया कहीं कियारी है
अलबेले व्यवहार घुमावी रस्ते हैं
लगते हैं दमदार असल में सस्ते हैं
यह बाजार सजा है दुनिया वालों का
छटे लुटेरों का बेकस रखवालों का
कहीं लगा दरबार इन्द्र का रौनक से
करती है परिहास मेनका शौनक से
कहीं सलोने सपने हैं जमुहाई में
बीत रही ज़िन्दगी कहीं तनहाई में
बजते झाँझ-मृदंग सबेरे मन्दिर में
जगते ज्वार शाम को छिपे समंदर में
देखो अपना रूप आइना लाया हूँ।
दुनिया वालों, मत समझो कंगाल
असल सरमाया हूँ...................।।२।।


पास न मेरे दौलत या मक्कारी है
और दुरंगों से की कभी न यारी है
किस्मत की सीढी को कभी न साधा है
साथ निभाती आई जग की बाधा है
इसीलिये ठोकर खाने का आदी हूँ
खाते पीते घर की बस बरबादी हूँ
कहता हूँ पर कहीं न सुनने वाला है
कहने का तुक तेवर तनिक निराला है
दुनिया है मदमस्त सलोनी राहों में
सपनों की तस्वीर बसी है चाहों में
घुटन है विश्वास तडपती ममता है
लकवा मारी पडी युवा की क्षमता है
इसीलिये मन की मशाल जला रोशनी लाया हूँ।
दुनिया वालों, मत समझो कंगाल
असल सरमाया हूँ...................।।३।।



................................. ओमशंकर


1 comment:

  1. मर्यादा की राह चुनी थी,
    नहीं ज्ञान था घातों का।
    दिन में युद्ध लड़े जाने थे,
    लाभ उन्हें था रातों का।

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