ओ जमीर देश के जगो
ओ फ़कीर देश के जगो
ओ कबीर देश के जगो
ओ समीर देश के जगो
सिन्धु सो रहा मसान में, हिन्द रो रहा जहान में,
अद्रि की शिखा अँगार है, जाह्नवी बडी उदार है,
दीप खूब जल रहे मगर अन्धकार से भरी डगर
कर्म की धुरी लचक गयी, धर्म की कमर मचक गयी
सत्य की जबान बन्द है, न्याय का विधान मन्द है
धूल फ़ाँकती सरस्वती, भोग में पगे सभी यती
शील अब लहू लुहान है, मेनका चढी मचान है
विश्व को विजय किया भले, आत्महीनता पडी गले।
ओ सुधीर कर्म में पगो
ओ जमीर देश के जगो।।१।।
सत्य दल गया प्रपंच से, नीति के विधान मंच से,
हर घडी विवश उदास है, कैद मे पडा हुलास है,
नीति में नही विधान है, धन सभी जगह प्रधान है,
सत्य का प्रभाव कण्ठ तक, सद्विचार सिर्फ़ ग्रन्थ तक,
ढोंग भर बची उपासना, फ़ूल फ़ल रही कुवासना,
कालनेमि रोज बढ रहे, आँजनेय मंत्र पढ रहे,
शून्य है स्वदेश-भावना, थक गयी अखण्ड साधना।
ओ प्रवीर देश के जगो
ओ जमीर देश के जगो।।२।।
...................................... ओमशंकर
No comments:
Post a Comment