Friday, 8 April 2011

जागो ! जागो भविष्य के कर्णधार



जागो भविष्य के कर्णधार, पन्ने अतीत के करते तेरी आतुर पुकार।
तू खोल नयन उनको निहार, जागो ! जागो भविष्य के कर्णधार ।।

इतिहास ग्लानि मे गलता है, भगवान राम की याद लिये
गीता के पन्ने मौन बने, अन्तरतम में अवसाद लिये
रणभेरी का का दिशिव्यापी स्वर, फ़िर अनायास ही बैठ गया
कृष्णवन्तो विश्वमार्यम का नारा क्यों हमसे रूठ गया
क्यो बनी अनमनी सी फ़िरती, गंगा यमुना की चपल धार
अम्बुधि-अन्तर से आती है, अवसाद भरी धीमी पुकार ।
तू खोल नयन उनको निहार, जागो ! जागो भविष्य के कर्णधार ।।

सन्देह तुम्हे हो रहा आज, अपनी ही कृतियों के ऊपर
निष्क्रिय-कृत्यों के बीच पडे, ढहती सी आशायें लेकर
तुम मौन साधना के साधक, अब मुखरित हो पर व्यर्थ बने
जीवन जालों में उलझे हो, कुन्ठाओं के ही अर्थ बने
देखो फ़िर से असहाय बनी, धरती के अन्तर की पुकार
गीता गायत्री की आँखों से, अविरल ढहती है अश्रुधार ।
तू खोल नयन उनको निहार, जागो ! जागो भविष्य के कर्णधार ।।

उद्वेगजन्य अन्तर लेकर, तुम घूम रहे हो लक्ष्यहीन
माँ अन्नपूर्णा के आँगन में रहकर भी बन रहे दीन
संसार सदा ही याचित था, तेरे सम्मुख ही दान श्रेष्ठ
अब तू ही बना भिखारी है तज कर आदर्श महान श्रेष्ठ
विकृत परम्परायें ले कर, ग्यानी-पिपासु में भ्रम विकार
तज उभय पक्ष के कर्म कलुष, अन्तस में भर ले सदविचार ।
तू खोल नयन उनको निहार, जागो ! जागो भविष्य के कर्णधार ।।

................................................................................. ओमशंकर त्रिपाठी




2 comments:

  1. एक ओजपूर्ण व्यक्तित्व जिसने मेरे जीवन को बहुत प्रभावित किया. मैं धन्य हूँ की मैंने दो वर्ष उस सचमुच के विद्यालय में बिताये और आचार्य जी का सानिध्य प्राप्त किया. आज मैं जो भी हूँ उसको निखारने में आचार्य जी की महती भूमिका है और उसके लिए उनका शत शत चरण वंदन ......
    डॉक्टर पंकज श्रीवास्तव, सर्जन, वाराणसी

    ReplyDelete