Wednesday 2 March 2011

राही अभी नही.............



थकी चाह इस बीच राह में ?
राही अभी नही................
पकड देख पाथेय, अरे, बस मंजिल यहीं कही
राही अभी नही................

सरिता, सर, दुर्गम गिरि, गहर कितने पार किये
अमर बूँद की आशा में अनगिन विष घूँट पिये
माना कठीन कुराह सिरे से सिर चढ कर आयी
कई चमकते शिखर खोद कर छोड गयी खाई
तो भी कहीं विराम बीच में राही, नही - नही
राही अभी नही................

माथे चढी शपथ चलने की अन्तर में ज्वाला
तलुओं पर चिरचिटे मढ गया आँखों पर जाला
फ़िर भी मन हिम्मतवाला, पर "अपने" दूर खडे
आकर गुँथे नागफ़नियों से काँटे बडे - बडे
होकर लहूलुहान चकित सा तबसे खडा यहीं
राही अभी नही................

धीरज दिया सदा ही तुमने और बढाया भी
पीछे रह उँचे शिखरों तक मुझे चढाया भी
फ़िर भी लिपटी ध्वजा हाथ की नही लहर पाई
ऊपर नीचे देख हो गया मन काई - काई
कैसे बनूँ निशान समय का दुनियाँ दूर नही
राही अभी नही................



............................................ ओम शंकर



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