Wednesday 2 March 2011

मुझको जलना ही कबूल है


मेरा जीवन नन्दन वन है या पतझड का बबूल है,
तुमको मलय समीर मुबारक, मुझको जलना ही कबूल है।

तुम बौराये आम्रकुँज मधुकर की वीणा नियति तुम्हारी
मै अँकुर हूँ स्वाभिमान का, चुभ जाना ही प्रकृति हमारी
यह मुरझाई पडी जिन्दगी तब कराह के क्षण जीती है
जब बासन्ती पवन तुम्हारा गन्ध भार हँस कर ढोती है
चैल हीन जीवन की फ़लश्रुति फ़िर कैसा मेरा दुकूल है।
तुमको मलय समीर मुबारक, मुझको जलना ही कबूल है॥

तुम समीर मैं धूल धरा की रौंद न जाओ तनिक रुको तो
आकाशी चोटी पर हूँगा कसम तुम्हारी तनिक झुको तो
मलय गगन की राह लग गयी सूना आँचल मुझे पुकारे
मैं अंकुर की गोद थकन की नीद तुम्हारे नेह सहारे
कोई किसी का दर्द दुलारे कोई माने उसे भूल है।
तुमको मलय समीर मुबारक, मुझको जलना ही कबूल है॥

तुम समर्थ निरपेक्ष विश्व हो मै संसार असार विखण्डित
तुम अथाह जलराशि महातम मै विवर्त केवल प्रतिबिम्बित
तुम अनन्त तो मैं बसन्त हूँ, तुम चन्दन मै सुरभि तुम्हारी
तुम कजरारे मेघ, तुम्हारे आँचल मे जल राशि हमारी
कोई तुम्हे शिखर में देखे कोई कहता तुम्हे मूल है।
तुमको मलय समीर मुबारक, मुझको जलना ही कबूल है॥

मेरा जीवन नन्दन वन है या पतझड का बबूल है,
तुमको मलय समीर मुबारक, मुझको जलना ही कबूल है।



................................................................... ओमशंकर



No comments:

Post a Comment