Thursday, 10 March 2011

राष्ट्र मंदिर का पुजारी


राष्ट्र मंदिर का पुजारी, मुक्ति का कामी नही हूँ ।

त्याग का पाथेय अक्षय पास मेरे
क्रूर कंटक दलन का उत्साह प्रेरे
विश्वविजयी भावना से मै भरा हूं
मै न अल्हड बाल या जर्जर जरा हूँ
हूँ पथिक अविराम, क्षण भर भी सुखद विश्राम का कामी नही हूँ ।
राष्ट्र मंदिर का पुजारी, मुक्ति का कामी नही हूँ ।।

पंथ दुर्गम है कठिन भी जानता हूँ
विघ्न-बाधायें बहुत है मानता हूँ
लक्ष्य का उन्नत शिखर अति दूर दुस्तर
फ़िसलता चमचम चिलकता पंथ प्रस्तर
सततता का मैं अथक अभ्यास, कुंठित हार का हामी नही हूँ।
राष्ट्र मंदिर का पुजारी, मुक्ति का कामी नही हूँ ।।

साधना का दीप हरदम ही जला है
भावना-संगीत अंतर मे पला है
रूठकर सुविधा सलोनी जा चुकी है
वह विराग बयार भी मुरझा चुकी है
लक्ष्य अच्युत अभय संधान, यश का किन्तु अनुगामी नहीं हूँ।
राष्ट्र मंदिर का पुजारी, मुक्ति का कामी नही हूँ ।।

मै चला हूँ और चलता ही रहूँगा
अंधतम में ज्योति बन जलता रहूँगा
मोह के बादल भले घिर घोर छाये
द्रोह की काली घटाय्रं रीत जायें
सूर्य की पहली किरण का गीत मैं, अँधियार का हामी नही हूँ।
राष्ट्र मंदिर का पुजारी, मुक्ति का कामी नही हूँ ।।

हो निराशा की भले घर-घर कहानी
झूम झंझायें उठे खोये निशानी
जान्हवी पथ सिंधु का भ्रम भूल जाये
अंधतम रवि को भले ही लील जाये
शुध्द शोणित का उमडता ज्वार हँ, पानी नही हूँ।
राष्ट्र मंदिर का पुजारी, मुक्ति का कामी नही हूँ ।।




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